हक़ीक़त सामने थी और हक़ीक़त से मैं ग़ाफ़िल था
मिरा दिल तेरा जल्वा था तिरा जल्वा मिरा दिल था
हुआ नज़्ज़ारा लेकिन यूँ कि नज़्ज़ारा भी मुश्किल था
जहाँ तक काम करती थीं निगाहें तूर हाइल था
रहा जान-ए-तमन्ना बन के जब तक जान-ए-मुश्किल था
न थी मुश्किल तो उस के बा'द फिर कुछ भी न था दिल था
नज़र बहकी हिजाब उट्ठा हुई इक रौशनी पैदा
फिर उस के बा'द बचना क्या सँभलना सख़्त मुश्किल था
हिजाब-ए-मासियत पर्दा ही किस के नूर-ए-इरफ़ाँ का
कि जन्नत से जुदा रह कर भी मैं जन्नत में दाख़िल था
बचा कर क्यूँ डुबोया ना-ख़ुदा ने इस सफ़ीने को
इन्हीं मौजों में तूफ़ाँ था इन्हीं मौजों में साहिल था
सुजूद-ए-बंदगी बे-कार इज्ज़-ए-इश्क़ ला-हासिल
ये सच है मैं तिरे क़ाबिल न था तू मेरे क़ाबिल था
हिक़ारत से जिसे ठुकरा दिया बरगश्ता शो'लों ने
वही परवाना-ए-बे-कस फ़रोग़-ए-शम-ए-महफ़िल था
निशान-ए-मंज़िल-ए-मक़्सूद जो आग़ाज़ में पाया
वही सहरा-ब-सहरा था वही मंज़िल-ब-मंज़िल था
सफ़ीना डूबने के बा'द इन बातों से क्या हासिल
जो दरिया था तो दरिया था जो साहिल था तो साहिल था
वो मेरे पास था 'शौकत' तो मैं ने क्यूँ नहीं देखा
जो वो मेरे मुक़ाबिल था तो मैं किस के मुक़ाबिल था
ग़ज़ल
हक़ीक़त सामने थी और हक़ीक़त से मैं ग़ाफ़िल था
शौकत थानवी