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हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ | शाही शायरी
haqiqat mahram-e-asrar se puchh

ग़ज़ल

हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ

अल्ताफ़ हुसैन हाली

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हक़ीक़त महरम-ए-असरार से पूछ
मज़ा अँगूर का मय-ख़्वार से पूछ

वफ़ा अग़्यार की अग़्यार से सुन
मिरी उल्फ़त दर ओ दीवार से पूछ

हमारी आह-ए-बे-तासीर का हाल
कुछ अपने दिल से कुछ अग़्यार से पूछ

दिलों में डालना ज़ौक़-ए-असीरी
कमंद-ए-गेसू-ए-ख़मदार से पूछ

दिल-ए-महजूर से सुन लज़्ज़त-ए-वस्ल
नशात-ए-आफ़ियत बीमार से पूछ

नहीं जुज़ गिर्या-ए-ग़म हासिल-ए-इश्क़
हमारी चश्म-ए-दरिया-बार से पूछ

नहीं आब-ए-बक़ा जुज़ जल्वा-ए-दोस्त
किसी लब-तिश्ना-ए-दीदार से पूछ

फ़रेब-ए-वादा-ए-दिलदार की क़द्र
शहीद-ए-ख़ंजर-ए-इंकार से पूछ

फ़ुग़ान-ए-शौक़ को माने नहीं वस्ल
ये नुक्ता अंदलीब-ए-ज़ार से पूछ

तसव्वुर में किया करते हैं जो हम
वो तस्वीर-ए-ख़याल-ए-यार से पूछ

मता-ए-बे-बहा है शेर-ए-'हाली'
मिरी क़ीमत मिरी गुफ़्तार से पूछ