हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को
वो करते उज़्र तो ये और भी गराँ होता
समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ
मिज़ाज ये कि ज़माना मिज़ाज-दाँ होता
भरी बहार के दिन हैं ख़याल आ ही गया
उजड़ न जाता तो फूलों में आशियाँ होता
दिमाग़ अर्श पे है तेरे दर की ठोकर से
नसीब होता जो सज्दा तो मैं कहाँ होता
ग़ज़ल
हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को
आले रज़ा रज़ा