हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते
वो तुम कुछ न करते मगर देख लेते
न करते कभी ख़्वाहिश-ए-सैर-ए-जन्नत
जो वाइज़ तिरा रहगुज़र देख लेते
रसाई कहाँ बज़्म-ए-दुश्मन में अपनी
कि हम भी उन्हें इक नज़र देख लेते
तमन्ना को फिर कुछ शिकायत न रहती
जो तुम भूल कर भी इधर देख लेते
न रहती ख़बर दीन ओ दुनिया की 'हसरत'
जो सोते उन्हें बे-ख़बर देख लेते
ग़ज़ल
हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते
हसरत मोहानी