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हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते | शाही शायरी
hamein waqf-e-gham sar-ba-sar dekh lete

ग़ज़ल

हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते

हसरत मोहानी

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हमें वक़्फ़-ए-ग़म सर-ब-सर देख लेते
वो तुम कुछ न करते मगर देख लेते

न करते कभी ख़्वाहिश-ए-सैर-ए-जन्नत
जो वाइज़ तिरा रहगुज़र देख लेते

रसाई कहाँ बज़्म-ए-दुश्मन में अपनी
कि हम भी उन्हें इक नज़र देख लेते

तमन्ना को फिर कुछ शिकायत न रहती
जो तुम भूल कर भी इधर देख लेते

न रहती ख़बर दीन ओ दुनिया की 'हसरत'
जो सोते उन्हें बे-ख़बर देख लेते