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हमें तो ख़ैर कोई दूसरा अच्छा नहीं लगता | शाही शायरी
hamein to KHair koi dusra achchha nahin lagta

ग़ज़ल

हमें तो ख़ैर कोई दूसरा अच्छा नहीं लगता

मोहसिन ज़ैदी

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हमें तो ख़ैर कोई दूसरा अच्छा नहीं लगता
उन्हें ख़ुद भी कोई अपने सिवा अच्छा नहीं लगता

नहीं गर नग़्मा-ए-शादी नफ़ीर-ए-ग़म सही कोई
कि साज़-ए-ज़िंदगानी बे-सदा अच्छा नहीं लगता

हमें ये बंद कमरों का मकाँ कुछ भा गया इतना
कि हम को अब कोई आँगन खुला अच्छा नहीं लगता

कुछ इतनी तल्ख़ उस दिन हो गई थी गुफ़्तुगू उन से
कई दिन से ज़बाँ का ज़ाइक़ा अच्छा नहीं लगता

कभी नज़दीक आ कर रू-ब-रू भी हों मुलाक़ातें
कि हम-सायों में इतना फ़ासला अच्छा नहीं लगता

कठिन रस्तों पे चलना अपनी उफ़्ताद-ए-तबीअत है
हमें आसान कोई रास्ता अच्छा नहीं लगता

इसे हम मर्सिया-गोयों पे 'मोहसिन' छोड़ देते हैं
लिखें हम आप अपना मर्सिया अच्छा नहीं लगता