EN اردو
हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं | शाही शायरी
hamein KHabar thi bachane ka usMein yara nahin

ग़ज़ल

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं

यासमीन हमीद

;

हमें ख़बर थी बचाने का उस में यारा नहीं
सो हम भी डूब गए और उसे पुकारा नहीं

ख़ुद आफ़्ताब मिरी राह का चराग़ बने
मगर ये बात मिरे चाँद को गवारा नहीं

जो उस में उतरी तो तूफ़ान ही मिलेंगे मुझे
मैं जानती हूँ कि वो मौज है किनारा नहीं

अजब फ़ज़ा है कि रंग-ए-नुमूद-ए-सुब्ह भी है
सियाह रात ने भी पैरहन उतारा नहीं

वजूद जिस को किसी मो'तबर शजर ने दिया
हवा की ज़द में भी तिनका वो बे-सहारा नहीं

जलेगा ख़ुद भी सहर तक मुझे भी लौ देगा
चराग़-ए-शाम कोई बख़्त का सितारा नहीं