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हमारे सर पे कोई हाथ था न साया था | शाही शायरी
hamare sar pe koi hath tha na saya tha

ग़ज़ल

हमारे सर पे कोई हाथ था न साया था

मोहम्मद इज़हारुल हक़

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हमारे सर पे कोई हाथ था न साया था
बस आसमाँ था जिसे जाने क्यूँ बनाया था

किसी से शाम-ढले छिन गया था पाय-ए-तख़्त
किसी ने सुब्ह हुई और तख़्त पाया था

वो एक सुब्ह बहुत ज़र-फ़िशाँ थी क़र्ये पर
और एक खेत बहुत सब्ज़ लहलहाया था

बस एक बाग़ था पानी के जिस में चश्मे थे
और एक घर था जिसे ख़ाक से बनाया था

पुकार उट्ठेंगे नाबूद बस्तियों के निशाँ
कि उस नवाह में कोई नज़ीर आया था