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हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं | शाही शायरी
hamare samne begana-war aao nahin

ग़ज़ल

हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं

फ़रीद जावेद

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हमारे सामने बेगाना-वार आओ नहीं
नियाज़-ए-अहल-ए-मोहब्बत को आज़माओ नहीं

हमें भी अपनी तबाही पे रंज होता है
हमारे हाल-ए-परेशाँ पे मुस्कुराओ नहीं

जो तार टूट गए हैं वो जुड़ नहीं सकते
करम की आस न दो बात को बढ़ाओ नहीं

दिए ख़ुलूस ओ मोहब्बत के बुझते जाते हैं
गिराँ न हो तो हमें इस क़दर सताओ नहीं

दिल ओ निगाह को कब तक कोई बिछाए रहे
ये देख कर कि उधर से कोई झुकाओ नहीं

ये और बात है काँटों में जी बहल जाए
नहीं कि लाला-ओ-गुल से मुझे लगाओ नहीं