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हमारे पाँव डरते हैं तुम्हारे साथ चलने में | शाही शायरी
hamare panw Darte hain tumhaare sath chalne mein

ग़ज़ल

हमारे पाँव डरते हैं तुम्हारे साथ चलने में

शिवकुमार बिलग्रामी

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हमारे पाँव डरते हैं तुम्हारे साथ चलने में
ज़रा सा वक़्त लगता है कभी निय्यत बदलने में

तुम्हें शायद पता हो या न हो शायद पता तुम को
कि सालों-साल लगते हैं चुभा काँटा निकलने में

किसी पत्थर की मूरत से न करना प्यार तुम हरगिज़
हज़ारों साल लगते हैं बुतों का दिल पिघलने में

ज़रा सा वक़्त तो दे ज़िंदगी मुझ को सँभलने का
बुरा हो वक़्त तो कुछ वक़्त लगता है सँभलने में

न जाने क्यूँ बुझी आँखों में जुगनूँ से चमकते हैं
अभी तो वक़्त बाक़ी है अँधेरी रात ढलने में