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हमारा राज़-दाँ कोई नहीं है | शाही शायरी
hamara raaz-dan koi nahin hai

ग़ज़ल

हमारा राज़-दाँ कोई नहीं है

मुमताज़ मीरज़ा

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हमारा राज़-दाँ कोई नहीं है
मोहब्बत की ज़बाँ कोई नहीं है

हर इक ग़ुंचा है मुरझाया हुआ सा
चमन में बाग़बाँ कोई नहीं है

क़फ़स से छूट कर जाएँ कहाँ हम
हमारा आशियाँ कोई नहीं है

कहाँ जाएँ ये दरमांदा मुसाफ़िर
अमीर-ए-कारवाँ कोई नहीं है

अंधेरे रास्ते रोके खड़े हैं
चराग़-ए-कारवाँ कोई नहीं है

हैं पज़मुर्दा तिरी यादों की कलियाँ
बहार-ए-जावेदाँ कोई नहीं है

इबारत है हयात-ओ-मर्ग तुम से
हमारी दास्ताँ कोई नहीं है

यहाँ हर जिंस बिक जाती है 'मुमताज़'
सुख़न का क़द्र-दाँ कोई नहीं है