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हमारा इश्क़ है तफ़रीक़ ईं-ओ-आँ से बुलंद | शाही शायरी
hamara ishq hai tafriq in-o-an se buland

ग़ज़ल

हमारा इश्क़ है तफ़रीक़ ईं-ओ-आँ से बुलंद

ऐन सलाम

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हमारा इश्क़ है तफ़रीक़ ईं-ओ-आँ से बुलंद
ज़मीं-नशीं हैं मगर हैं हम आसमाँ से बुलंद

बहार ख़ाक-ब-दामाँ है पस्तियों में अभी
चमन अगरचे उमीदों का है ख़िज़ाँ से बुलंद

हयात-ए-क़तरा है दरिया के साथ वाबस्ता
वो उड़ गया जो हुआ मौजा-ए-रवाँ से बुलंद

ख़िराम-गाह-ए-निगाराँ अगर नहीं न सही
मगर मैं दिल को समझता हूँ कहकशाँ से बुलंद

मज़ाक़-ए-इश्क़ नहीं पाए-बंद-ए-दैर-ओ-हरम
हमारा मस्लक-ए-दीं है हर आस्ताँ से बुलंद

'सलाम' हँसती हुई बिजलियों का तोड़ ये है
कि आशियाँ में रहो फ़िक्र-ए-आशियाँ से बुलंद