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हमारा दिल वो गुल है जिस को ज़ुल्फ़-ए-यार में देखा | शाही शायरी
hamara dil wo gul hai jis ko zulf-e-yar mein dekha

ग़ज़ल

हमारा दिल वो गुल है जिस को ज़ुल्फ़-ए-यार में देखा

जलील मानिकपूरी

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हमारा दिल वो गुल है जिस को ज़ुल्फ़-ए-यार में देखा
जो ज़ुल्फ़ें हो गईं बरहम गले के हार में देखा

भला गुल क्या तिरा हम-सर हो जिस की ये हक़ीक़त है
अभी गुलशन में देखा था अभी बाज़ार में देखा

बसीरत जब हुई पैदा हमें मश्क़-ए-तसव्वुर से
जो कुछ ख़ल्वत में देखा था अभी बाज़ार में देखा

चमन में इक बुत-ए-नाज़ुक-अदा महव-ए-तमाशा है
नया गुल आज हम ने दामन-ए-गुलज़ार में देखा

'जलील' इक नाज़ की क़ीमत दिल ओ जाँ दीन ओ ईमाँ है
अजब अंदाज़ हम ने हुस्न के बाज़ार में देखा