हम वो नालाँ हैं बोली-ठोली में
बुलबुलों को जो लें ठिठोली में
जामा-ज़ेबों से उस को निस्बत क्या
लाख टुकड़े हैं गुल की चोली में
रंज-ए-ग़म खाने को ख़ुदा ने दिया
क्या नहीं मुझ गदा की झोली में
अल्फ़-लैला सुने वो गुल तो सुनाएँ
बुलबुलें इक हज़ार बोली में
ख़ून-ए-नाहक़ हमारा उछलेगा
रंग लाया जो शोख़ होली में
चश्म-ए-इबरत से देख पर्दा-नशीं
शक्ल ताबूत की है डोली में
सब्ज़ा-ए-ख़त हो क्यूँ न जौहर-ए-ख़ाल
ज़हर तिरयाक की है गोली में
बोसा उस सर्व-ए-क़द से हम आज़ाद
माँग लेते हैं बोली-ठोली में
'शाद' रो रो दिया है शबनम ने
जब गुलों ने लिया ठिठोली में
ग़ज़ल
हम वो नालाँ हैं बोली-ठोली में
शाद लखनवी