EN اردو
हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे | शाही शायरी
hum tera ahd-e-mohabbat Thahre

ग़ज़ल

हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे

उम्मीद फ़ाज़ली

;

हम तिरा अहद-ए-मोहब्बत ठहरे
लौह-ए-निस्याँ की जसारत ठहरे

दिल लहू कर के ये क़िस्मत ठहरे
संग फ़नकार की उजरत ठहरे

मक़्तल-ए-जाँ की ज़रूरत ठहरे
हम कि शायान-ए-मोहब्बत ठहरे

क्या क़यामत है वो क़ातिल मुझ में
मेरे एहसास की सूरत ठहरे

वक़्त के दजला-ए-तूफ़ानी में
आप हम मौजा-ए-उज्लत ठहरे

दोस्ती ये है कि ख़ुश्बू के लिए
रंग ज़िंदानी-ए-सूरत ठहरे

तू है ख़ुर्शीद न मैं हूँ शबनम
क्या मुलाक़ात की सूरत ठहरे

उफ़ ये गुज़रे हुए लम्हों का हुजूम
दर-ओ-दीवार क़यामत ठहरे

कूचा-गर्दान-ए-जुनूँ मिस्ल-ए-सबा
ज़ुल्फ़-ए-आवारा की क़िस्मत ठहरे

इश्क़ में मंज़िल आराम भी थी
हम सर-ए-कूचा-ए-वहशत ठहरे

जब से 'उम्मीद' गया है कोई!!
लम्हे सदियों की अलामत ठहरे