हम से करता है अबस गुफ़्तार कज
रास्त-बाज़ों से न हो ऐ यार कज
इश्क़-ए-अबरू से तिरी ऐ कज-कुलाह
बाँधता है माह-ए-नौ दस्तार कज
है तवाज़ो भी बुज़ुर्गी का निशाँ
क्यूँ न हो पीरी में जिस्म-ए-ज़ार कज
कज-रवी इस ज़ुल्फ़ का है ख़ास्सा
जिस तरह है मार की रफ़्तार कज
हात यूँ क़ातिल-जबीनों का लगा
जिस तरह पहने सनम ज़ुन्नार कज
रास्ती इक बात में उस की नहीं
कज रवा कज-मज ज़बाँ गुफ़्तार कज
क़स्र-ए-तन पीरी में झुक कर क्या रुके
गिर पड़े कोहना जो हो दीवार कज
जा-ए-नज़्ज़ारा है फिरते हैं हसीं
टोपियाँ रख कर सर-ए-बाज़ार कज
कज-नुमा आईना-ए-आलम है 'अर्श'
बे-सबब टेढ़े अबस हैं यार कज
ग़ज़ल
हम से करता है अबस गुफ़्तार कज
मीर कल्लू अर्श