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हम क़त्ल हो गए नहीं तुझ को ख़बर हनूज़ | शाही शायरी
hum qatl ho gae nahin tujhko KHabar hanuz

ग़ज़ल

हम क़त्ल हो गए नहीं तुझ को ख़बर हनूज़

मीर हसन

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हम क़त्ल हो गए नहीं तुझ को ख़बर हनूज़
बाँधे फिरे है हम पे मियाँ तू कमर हनूज़

सौ सौ तरह के वस्ल ने मरहम रखे वले
ज़ख़्म-ए-फ़िराक़ हैं मिरे वैसे ही तर हनूज़

खोली थी ख़्वाब-ए-नाज़ से किस ने ये उठ के ज़ुल्फ़
लाती है बू-ए-नाज़ नसीम-ए-सहर हनूज़

वादों पे तेरे काम भी मेरा हुआ तमाम
बातें ही तू बनाया किया यार पर हनूज़

जो दूध का जला हो पिए छाछ फूँक फूँक
हूँ वस्ल में पे हिज्र से है मुझ को डर हनूज़

भूले से तू ने प्यार की इक दिन कही जो बात
रोता हूँ दिल ही दिल में उसे याद कर हनूज़

उजड़े हज़ार शहर 'हसन' और फिर बसे
आबाद पर हुआ न ये दिल का नगर हनूज़