हम ने सब शेर में सँवारे थे
हम से जितने सुख़न तुम्हारे थे
रंग-ओ-ख़ुशबू के हुस्न-ओ-ख़ूबी के
तुम से थे जितने इस्तिआरे थे
तेरे क़ौल-ओ-क़रार से पहले
अपने कुछ और भी सहारे थे
जब वो लाल-ओ-गुहर हिसाब किए
जो तिरे ग़म ने दिल पे वारे थे
मेरे दामन में आ गिरे सारे
जितने तश्त-ए-फ़लक में तारे थे
उम्र-ए-जावेद की दुआ करते
'फ़ैज़' इतने वो कब हमारे थे
ग़ज़ल
हम ने सब शेर में सँवारे थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़