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हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे | शाही शायरी
hum na mahzuz hue hain kisi shai se aise

ग़ज़ल

हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे

क़ासिम अली ख़ान अफ़रीदी

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हम न महज़ूज़ हुए हैं किसी शय से ऐसे
जैसे मसरूर हैं पीने सते मय से ऐसे

न हमें काम है हशमत सते जमशेद के कुछ
बोरिया बस है ब-अज़ मसनद-ए-कय से ऐसे

छोड़ दुनिया को ब-दुनिया ज़े-हक़ीक़त दुनिया
ख़ूब वाक़िफ़ हूँ रग-ओ-रेशा-ओ-पै से ऐसे

दीन दुनिया की मोहब्बत में अगर ग़ौर करो
है तनफ़्फ़ुर मुझे जिस तरह से कै से ऐसे

नय में ताक़त नहीं नाय का करिश्मा ज़ाहिर
बूझ नाय की सदा जो सुने नय से ऐसे

ख़ूब-रू अगले ज़माने के हैं अब तक मौजूद
आफ़त-ए-जान जो थे हैं वही वैसे ऐसे

तू जो आवारा है 'अफ़रीदी' बता किस जा पर
दिल लिया किस ने तिरा कौन सी लय से ऐसे