हम न होंगे तो हमें याद करोगे यारो
तज़्किरे होंगे यही जब भी मिलोगे यारो
हम ने रूदाद-ए-वफ़ा ख़ुद से मुरत्तब की है
दास्ताँ फिर ये कभी सुन न सकोगे यारो
हम न होंगे तो किसे पाओगे दिल का महरम
हम न होंगे तो ये दुख किस से कहोगे यारो
महफ़िलें यूँही रहेंगी यूँही यारों के हुजूम
लेकिन इक बात जिसे फिर न सुनोगे यारो
हम से ज़िंदा है रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत अब तक
उस को जाँ दे के कहाँ ज़िंदा रखोगे यारो
हम ने हर बार हवादिस की कलाई मोड़ी
तुम उन्हें किस तरह मग़्लूब करोगे यारो
ज़िक्र होगा लब-ए-अय्याम पे अक्सर अपना
तुम हमें मुसहफ़-ए-आलम में पढ़ोगे यारो
वक़्त पूजेगा हमें वक़्त हमें ढूँडेगा
और तुम वक़्त के हम-राह चलोगे यारो
हमीं तारीख़-ए-ज़माना के मुरत्तब हैं 'ख़लीक़'
हमें तारीख़ में इक रोज़ कहोगे यारो
ग़ज़ल
हम न होंगे तो हमें याद करोगे यारो
ख़लीक़ कुरेशी