हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला
दुनिया मिली किसी को किसी को ख़ुदा मिला
हम ख़ुद को देखने के तो लाएक़ न थे मगर
हर आइना हमारी तरफ़ देखता मिला
ऐसा था कौन रूह के अंदर जो देखता
हर सत्ह में वगर्ना हमें जाँचता मिला
इंसान और वक़्त में कब दोस्ती रही
हर लम्हा आदमी का लहू चाटता मिला
इंसाँ समझ के हम ने उसे दिल में रख लिया
इंसाँ के रूप में मगर इक देवता मिला
दिलदार भी मिले हमें पर इस को क्या करें
कोई ख़याल सा तो कोई ख़्वाब सा मिला
ग़ज़ल
हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला
अब्दुल्लाह जावेद