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हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया | शाही शायरी
hum ko us shoKH ne kal dar talak aane na diya

ग़ज़ल

हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

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हम को उस शोख़ ने कल दर तलक आने न दिया
दर-ओ-दीवार को भी हाल सुनाने न दिया

पर्दा-ए-चश्म में हर दम तो छुपाए आँसू
बे-क़रारी ने मुझे राज़ छुपाने न दिया

मुझ को आलूदा रखा इस मिरी गुमराही ने
अरक़-ए-शर्म-ए-गुनह भी तो बहाने न दिया

तेरे कहने से मैं अब लाऊँ कहाँ से नासेह
सब्र जब इस दिल-ए-मुज़्तर को ख़ुदा ने न दिया

मनअ है बस कि ख़ुर-ओ-ख़्वाब हमें ग़म में तेरे
मर के सोने न दिया ज़हर भी खाने न दिया

हूँ सितमगर मैं जफ़ाओं से तिरी शर्मिंदा
ना-तवानी ने मुझे सर भी उठाने न दिया

दम का आना तो बड़ी बात है लब पर 'आरिफ़'
ज़ोफ़ ने हर्फ़-ए-शिकायत कभी आने न दिया