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हम को कब इंतिज़ार है फ़स्ल-ए-बहार हो न हो | शाही शायरी
hum ko kab intizar hai fasl-e-bahaar ho na ho

ग़ज़ल

हम को कब इंतिज़ार है फ़स्ल-ए-बहार हो न हो

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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हम को कब इंतिज़ार है फ़स्ल-ए-बहार हो न हो
दाग़-ए-जिगर शगुफ़्ता बाद-ए-ग़ुल ब-कनार हो न हो

दर्द तू मेरे पास से मरते तलक न जाइयो
ताक़त-ए-सब्र हो न हो ताब-ओ-क़रार हो न हो

सुब्ह तो हुई है देर क्या तेरी बला से साक़िया
जाम-ए-शराब तू तो दे हम को ख़ुमार हो न हो

तीर-ए-निगह लगा के तुम कहते हो फिर लगा न ख़ूब
मेरा तो काम हो गया सीने के पार हो न हो

तालिब-यक-नज़ारा हूँ इतना भी मुझ से बैर क्या
मुँह तो मिरी तरफ़ को हो गो कि दो-चार हो न हो

हल्का-ए-दर है हल्क़ा-ज़न कोई भला ख़बर तो लो
दिल मिरा शादी-मर्ग है है वही यार हो न हो

'हातिम' अगर गुनाह करे शिकवा न कर ख़ुदा से डर
फ़िदवी जाँ-निसार है तू भी हज़ार हो न हो