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हम जो गिर कर सँभल जाएँगे | शाही शायरी
hum jo gir kar sambhal jaenge

ग़ज़ल

हम जो गिर कर सँभल जाएँगे

ज़ुबैर अमरोहवी

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हम जो गिर कर सँभल जाएँगे
रास्ते ख़ुद बदल जाएँगे

क़हक़हों को ज़रा रोकिए
वर्ना आँसू मचल जाएँगे

दोस्तों के ठिकाने बहुत
आस्तीनों में पल जाएँगे

नूर हम से तलब तो करो
हम चराग़ों में ढल जाएँगे

आईनों से न रूठा करो
वर्ना चेहरे बदल जाएँगे

देखिए मुझ को मत देखिए
लोग देखेंगे जल जाएँगे

क्या ख़बर थी कि इस दौर में
खोटे सिक्के भी चल जाएँगे

ग़म तो ग़म ही रहेंगे 'ज़ुबैर'
ग़म के उनवाँ बदल जाएँगे