हम ही बदलेंगे रह-ओ-रस्म-ए-गुलिस्ताँ यारो
हम से वाबस्ता है ता'मीर-ए-बहाराँ यारो
क़ुरबत-ए-काकुल-ओ-रुख़सार से जी तंग नहीं
इक ज़रा चैन तो दे गर्दिश-ए-दौराँ यारो
लाख हम मरहला-ए-दार-ओ-रसन से गुज़रे
ज़िंदगी से न हुए फिर भी गुरेज़ाँ यारो
इक थका ख़्वाब कि सीने में सुलगता है अभी
इक दबी याद कि है नीश-ए-रग-ए-जाँ यारो
आमद-ए-सुब्ह से मायूस नहीं हैं लेकिन
डस न ले तीरगी-ए-शाम-ए-ग़रीबाँ यारो
और कुछ दूर कि थोड़ी है रह-ए-जौर-ओ-सितम
और कुछ देर कि टूटा दर-ए-ज़िंदाँ यारो
अपना दुख हो तो 'रियाज़' उस का मुदावा करते
हैं सभी शो'ला-ब-जाँ चाक-ए-गरेबाँ यारो
ग़ज़ल
हम ही बदलेंगे रह-ओ-रस्म-ए-गुलिस्ताँ यारो
अहमद रियाज़