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हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़ | शाही शायरी
hum hain ai yar chaDhae hue paimana-e-ishq

ग़ज़ल

हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़

आग़ा हज्जू शरफ़

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हम हैं ऐ यार चढ़ाए हुए पैमाना-ए-इश्क़
तिरे मतवाले हैं मशहूर हैं मस्ताना-ए-इश्क़

दुश्मनों में भी रहा रब्त-ए-मोहब्बत बरसों
ख़ुश न आया कसी माशूक़ को याराना-ए-इश्क़

मुझ को जो चाह मोहब्बत की है मजनूँ को कहाँ
उस को लैला ही का सौदा है मैं दीवाना-ए-इश्क़

जान लेंगे कि वो दिल लेंगे जिन्हें चाहा है
देखिए करते हैं क्या आ के वो जुर्माना-ए-इश्क़

जा-ब-जा चाहने वालों का जो मजमा' देखा
कूचा-ए-यार को समझा मैं जिलौ-ख़ाना-ए-इश्क़

साल-हा-साल से ख़ुश-बाश जो हूँ सहरा में
आलम-ए-हू को समझता हूँ मैं वीराना-ए-इश्क़

दिल पिसा चाहता है जा के हिना पर उस की
ख़िर्मन-ए-हुस्न हुआ चाहता है दाना-ए-इश्क़

दिल का है क़स्द तिरी बज़्म में अड़ कर जाऊँ
क्या ही बे-पर की उड़ाता है ये परवाना-ए-इश्क़

हर परी-ज़ाद की है जल्वा-नुमा इक तस्वीर
शीशा-ए-दिल है हमारा कि परी-ख़ाना-ए-इश्क़

दिल मिरा ख़ास मकाँ है जो तिरी उल्फ़त का
कहती है सारी ख़ुदाई इसे काशाना-ए-इश्क़

कौन किस का शब-ए-मेराज में होगा माशूक़
की है किस शोख़ ने ये महफ़िल-ए-शाहाना-ए-इश्क़

तू करे नाज़ तुझे यार ज़माना चाहे
ता-अबद ये रहे आबाद तिरा ख़ाना-ए-इश्क़

उस परी-रू ने जो देखा मिरे दिल को सद-चाक
अपनी ज़ुल्फ़ों में किया नाम-ए-हवा शाना-ए-इश्क़

आलम-ए-नूर तिरी शक्ल का परवाना है
हुस्न की जान है तू और है जानाना-ए-इश्क़

सर-ब-कफ़ गंज-ए-शहीदाँ में चले जाते हैं
इम्तिहाँ से नहीं डरते तिरे फ़रज़ाना-ए-इश्क़

नज़्अ' में सूरा-ए-यूसुफ़ कोई लिल्लाह पढ़े
दम भी निकले तो मरूँ सुन के मैं अफ़्साना-ए-इश्क़

डबडबाईं मिरी आँखें तो वो क्या कहते हैं
देखो लबरेज़ हैं छलकेंगे ये पैमाना-ए-इश्क़

ऐ 'शरफ़' कौन मिरे दिल के मुक़ाबिल होगा
इक यही सारी ख़ुदाई में है मर्दाना-ए-इश्क़