हम ग़लत एहतिमाल रखते थे
तुझ से क्या क्या ख़याल रखते थे
न सुना तू ने क्या कहें ज़ालिम
वर्ना हम अर्ज़-ए-हाल रखते थे
न रहा इंतिज़ार भी ऐ यास
हम उमीद-ए-विसाल रखते थे
जौहर-ए-आईना नीं दिखलाया
सादा-रू जो कमाल रखते थे
न सुना था किसू ने ये तो ग़ुरूर
सभी दिलबर जमाल रखते थे
आह वो दिन गए कि हम भी 'असर'
दिल को अपने सँभाल रखते थे

ग़ज़ल
हम ग़लत एहतिमाल रखते थे
मीर असर