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हम ग़लत एहतिमाल रखते थे | शाही शायरी
hum ghalat ehtimal rakhte the

ग़ज़ल

हम ग़लत एहतिमाल रखते थे

मीर असर

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हम ग़लत एहतिमाल रखते थे
तुझ से क्या क्या ख़याल रखते थे

न सुना तू ने क्या कहें ज़ालिम
वर्ना हम अर्ज़-ए-हाल रखते थे

न रहा इंतिज़ार भी ऐ यास
हम उमीद-ए-विसाल रखते थे

जौहर-ए-आईना नीं दिखलाया
सादा-रू जो कमाल रखते थे

न सुना था किसू ने ये तो ग़ुरूर
सभी दिलबर जमाल रखते थे

आह वो दिन गए कि हम भी 'असर'
दिल को अपने सँभाल रखते थे