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हम दिल फ़िदा करें कि तसद्दुक़-ए-जिगर करें | शाही शायरी
hum dil fida karen ki tasadduq-e-jigar karen

ग़ज़ल

हम दिल फ़िदा करें कि तसद्दुक़-ए-जिगर करें

नादिर शाहजहाँ पुरी

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हम दिल फ़िदा करें कि तसद्दुक़-ए-जिगर करें
जो भी कहें हुज़ूर वही उम्र भर करें

कुछ अब तो आप चारा-ए-दर्द-ए-जिगर करें
मुझ पर नहीं तो अपने करम पर नज़र करें

कुछ बात है लबों पे जो मोहर-ए-सुकूत है
करने को नाले शाम से हम ता-सहर करें

तूल-ए-शब-ए-फ़िराक़ से घबरा गया है जी
ऐ काश आप क़िस्सा मिरा मुख़्तसर करें

ले चुपके चुपके काम किए जा ग़म-ए-फ़िराक़
दुनिया को घर की बात से क्या बा-ख़बर करें

'नादिर' यही है असल में मेराज-ए-बंदगी
याद उन की उन के इश्क़ से भी पेश-तर करें