हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम
इस पर भी शाकी-ए-ग़म-ए-दौराँ नहीं हैं हम
शिकवा ज़बाँ पे लाएँ वो इंसाँ नहीं हैं हम
तेरे सितम-ब-ख़ैर परेशाँ नहीं हैं हम
ख़ाक अपनी ख़ाक-ए-कूचा-ए-जानाँ में जा मिली
एहसानमंद-ए-गोर-ए-ग़रीबाँ नहीं हैं हम
आँखों में अश्क दाग़ जिगर में लबों पे आह
सब कुछ है पास बे-सर-ओ-सामाँ नहीं हैं हम
गुलहा-ए-अश्क-ए-ख़ूँ से है दामन भरा हुआ
किस ने कहा कि ख़ुल्द-ब-दामाँ नहीं हैं हम
हम से गुरेज़ हम से ये बे-इ'तिनाइयाँ
ऐ दोस्त बुल-हवस का तो अरमाँ नहीं हैं हम
हसरत जो आ गई वो निकल ही नहीं सकी
वा हो सके जो 'अब्र' वो ज़िंदाँ नहीं हैं हम
ग़ज़ल
हैराँ नहीं हैं हम कि परेशाँ नहीं हैं हम
अब्र अहसनी गनौरी