हैरान न हो देख मैं क्या देख रहा हूँ
बंदे तिरी सूरत में ख़ुदा देख रहा हूँ
वो अपनी जफ़ाओं का असर देख रहे हैं
मैं मअनी-ए-तस्लीम-ओ-रज़ा देख रहा हूँ
दुज़्दीदा निगाहों से किधर देख रहे हो
क्या बात है! ये आज मैं क्या देख रहा हूँ
है हुस्न यही शय तो गुमाँ और न कीजे
सौदा नहीं मतलूब ज़रा देख रहा हूँ
किस तरह न क़ाइल हूँ दुआ-ए-सहरी का
उस लब पे तबस्सुम की ज़िया देख रहा हूँ
क्यूँ अर्ज़-ए-वतन तंग है ये बात ही क्या है
अब तो फ़क़त इक क़ब्र की जा देख रहा हूँ
मर जाने की धमकी हुई तम्हीद-ए-तमाशा
मैं ने कहा देख उस ने कहा देख रहा हूँ
ग़ज़ल
हैरान न हो देख मैं क्या देख रहा हूँ
हफ़ीज़ जालंधरी