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हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल | शाही शायरी
hairan hai zamane mein kise apna kahe dil

ग़ज़ल

हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल

बशीर मुंज़िर

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हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल
चेहरे तो हैं गुल-रंग मगर खोट भरे दिल

किस सम्त लिए जाता है ये दौर-ए-तरक़्क़ी
धातों के हुए जिस्म तो पत्थर के बने दिल

ग़ुंचा है तो चटके वो सितारा है तो चमके
बेताब है सीने में धड़कने के लिए दिल

वीराँ-कदा-ए-दहर में क्या रक्खा है 'मुंज़िर'
कुछ दर्द के अफ़्साने तो कुछ टूटे हुए दिल