हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल
चेहरे तो हैं गुल-रंग मगर खोट भरे दिल
किस सम्त लिए जाता है ये दौर-ए-तरक़्क़ी
धातों के हुए जिस्म तो पत्थर के बने दिल
ग़ुंचा है तो चटके वो सितारा है तो चमके
बेताब है सीने में धड़कने के लिए दिल
वीराँ-कदा-ए-दहर में क्या रक्खा है 'मुंज़िर'
कुछ दर्द के अफ़्साने तो कुछ टूटे हुए दिल
ग़ज़ल
हैराँ है ज़माने में किसे अपना कहे दिल
बशीर मुंज़िर