हैं कश्मकश में आज तिरी दास्ताँ से हम
ऐ दिल शुरूअ' करें ये हिकायत कहाँ से हम
तेरा ख़ुलूस तेरी मोहब्बत तिरी नज़र
किस तरह छीन लाएँ मह-ओ-कहकशाँ से हम
नाज़ाँ है कोई अपने तग़ाफ़ुल पे मर्हबा
मजबूर हो रहे दिल-ए-नाज़-दाँ से हम
जोश-ए-जुनूँ ने थाम लिया है ख़ुलूस है
गुज़रे क़दम क़दम पे नए इम्तिहाँ से हम
क़हत-ए-वफ़ा में वलवला-ए-जाँ फ़ना हुआ
क्या बद-गुमाँ हैं आज किसी राज़दाँ से हम
ये तो ख़िज़ाँ-नसीब बहारों से पूछिए
वाबस्ता-ए-ख़ुलूस रहे गुलिस्ताँ से हम
महसूस हो रहा है कि मंज़िल क़रीब है
कुछ दूर जा चुके हैं फ़ज़ा-ए-जहाँ से हम
उफ़ वुसअ'त-ए-निगाह-ए-तख़य्युल न पूछिए
सो आसमाँ-बुलंद हैं इस आसमाँ से हम
ये दास्तान-ए-ग़म ही मता-ए-'अज़ीज़' है
दुनिया बसा रहे हैं ग़म-ए-जावेदाँ से हम
ग़ज़ल
हैं कश्मकश में आज तिरी दास्ताँ से हम
अज़ीज़ बदायूनी