हैफ़ दिल में तिरे वफ़ा न हुई
क्यूँ तिरी चश्म में हया न हुई
यार ने नामा-बर से ख़त न लिया
मेरी ख़ातिर अज़ीज़ क्या न हुई
रह गया दूर तेरे कूचे से
ख़ाक भी मेरी पेश पा न हुई
कट गई उम्र मेरी ग़फ़लत में
कुछ तिरी बंदगी अदा न हुई
दूद-ए-दिल तेरी ज़ुल्फ़ तक पहुँचे
आह याँ तक मिरी रसा न हुई
चश्म-ए-ख़ूँ-ख़्वार से 'फ़ुग़ाँ' देखा
दिल-ए-बीमार को शिफ़ा न हुई
ग़ज़ल
हैफ़ दिल में तिरे वफ़ा न हुई
अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ