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है क़त्ल-गह-ए-शौक़ में ख़ंजर हमा-तन-चश्म | शाही शायरी
hai qatl-gah-e-sauq mein KHanjar hama-tan-chashm

ग़ज़ल

है क़त्ल-गह-ए-शौक़ में ख़ंजर हमा-तन-चश्म

ख़ावर रिज़वी

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है क़त्ल-गह-ए-शौक़ में ख़ंजर हमा-तन-चश्म
मंज़र हमा-तन-गुल गुल-ए-मंज़र हमा-तन-चश्म

है कौन जो आशुफ़्ता-मिज़ाजी की रखे लाज
उस कू-ए-मलामत के हैं पत्थर हमा-तन-चश्म

कब आएगा इंसाफ़ का दिन दावर-ए-महशर
इक उम्र से मैं हूँ सर-ए-महशर हमा-तन-चश्म

ये सुब्ह तो वो सुब्ह नहीं जिस की तलब में
तारे सर-ए-मिज़्गाँ रहे शब भर हमा-तन-चश्म

ऐ जान-ए-ग़ज़ल तू है कहाँ तेरे लिए है
'ख़ावर' हमा-तन-दिल दिल-ए-'ख़ावर' हमा-तन-चश्म