EN اردو
है नक़्श-ए-दिरम जो नक़्श-ए-पा है | शाही शायरी
hai naqsh-e-diram jo naqsh-e-pa hai

ग़ज़ल

है नक़्श-ए-दिरम जो नक़्श-ए-पा है

ख़्वाज़ा मोहम्मद वज़ीर लखनवी

;

है नक़्श-ए-दिरम जो नक़्श-ए-पा है
आप आते तो घर दिरम-सिरा है

दिल जल्वा तिरा दिखा रहा है
शीशा ये मिरा परी-नुमा है

सुल्तान-ए-जहाँ है जो गदा है
तैमूर हर इक शिकस्ता-पा है

इंसाँ भी क़ुदरत-ए-ख़ुदा है
क्या संग को बुत बना दिया है

शीरीं है दहन करो शुक्र-ए-ख़ंद
हँसने में तुम्हारी इक मज़ा है

मज़मून परवाने बन के आएँ
शबदेज़-ए-क़लम चराग़-पा है

यारान-ए-गुज़श्त-गाँ से है उन्स
ज़िंदा मुर्दों पे मर रहा है

आया नहीं ख़ुद-फ़रोश मेरा
गोया मुझे मोल ले लिया है

वो रश्क-ए-बहार-ओ-ग़ैरत-ए-गुल
गुल-गश्त-ए-चमन को जो गया है

गुलज़ार हुआ है पानी पानी
बुलबुल पानी का बुलबुला है

जो चाहिए इश्क़ में किया वो
हम मर गए कहिए मर्हबा है

है झूटा कहूँ जो रास्त है क़द
ये तौसन-ए-हुस्न अलिफ़ हुआ है

मुँह जिस ने दिया वो रिज़्क़ देगा
गोया ये दहाँ आसिया है

तौबा का न दर हो बंद यारब
जब तक दर-ए-मै-कदा खुला है

है शीशा-ए-सब्ज़ गर्म क़ुलक़ुल
तूती मस्तों का बोलता है

क्या जिस्म है साफ़ उस परी का
गोया क़द्द-ए-आदम आइना है

बेगाना कोई नज़र न आया
आइना भी सूरत-आश्ना है

क्या ख़ौफ़-ए-गुनह 'वज़ीर' को हो
हामी सुल्तान-ए-अंबिया है