है हमन का शाम कोई ले जा
कि मुझे आ के टुक दर्स दे जा
बुल-हवस कूँ हुआ है तब सीं मग़्ज़
जब सीं तुम ने उसे बुला भेजा
तुम सिवा हम कूँ और जागह नहीं
ऐ सजन हम सीं मत लड़ो बेजा
'आबरू' चाहता है तू मत उड़
बुल-हवस उस गली सीं सन बेजा
ग़ज़ल
है हमन का शाम कोई ले जा
आबरू शाह मुबारक