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है हमन का शाम कोई ले जा | शाही शायरी
hai haman ka sham koi le ja

ग़ज़ल

है हमन का शाम कोई ले जा

आबरू शाह मुबारक

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है हमन का शाम कोई ले जा
कि मुझे आ के टुक दर्स दे जा

बुल-हवस कूँ हुआ है तब सीं मग़्ज़
जब सीं तुम ने उसे बुला भेजा

तुम सिवा हम कूँ और जागह नहीं
ऐ सजन हम सीं मत लड़ो बेजा

'आबरू' चाहता है तू मत उड़
बुल-हवस उस गली सीं सन बेजा