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है दर्द के इंतिसाब सा कुछ | शाही शायरी
hai dard ke intisab sa kuchh

ग़ज़ल

है दर्द के इंतिसाब सा कुछ

इरफ़ान अहमद

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है दर्द के इंतिसाब सा कुछ
वो याद आँगन में ख़्वाब सा कुछ

वो आरज़ूएँ वो तिश्ना-कामी
हद-ए-निगह तक सराब सा कुछ

वो हिजरतों के उदास मौसम
सफ़र सफ़र इज़्तिराब सा कुछ

हर इक तअल्लुक़ शिकस्त-माइल
रविश रविश इंक़िलाब सा कुछ

वो मिशअल-ए-जाँ बुझी बुझी सी
कोई बिखरते गुलाब सा कुछ

वो फूल हाथों में संग-पारे
वो एक पैसा हिसाब सा कुछ

वो उस के दिल में सवाल जैसा
मिरे लबों पे जवाब सा कुछ

बस एक हालत में ही मिला वो
गरहन में आफ़्ताब सा कुछ