है अक्स-ए-आईना दिल में किसी बिलक़ीस-ए-सानी का
तसव्वुर है मिरा उस्ताद बहज़ाद और मानी का
ग़नीमत समझो ये मिल बैठना यारान-ए-जानी का
भरोसा क्या है दुनिया में दो-रोज़ा ज़िंदगानी का
नज़ाकत हो गई ज़र्बुल-मसल उन की ज़माने में
भला हो या उलूही इस हमारी सख़्त-जानी का
है अक्स इस चश्म-ए-पुर-नम में किसी आबी दुपट्टे का
बनाया है मकाँ हम ने अजब पानी में पानी का
ग़ज़ब का काट कर करती हैं अदाएँ उस परी-वश की
उभारों पर है जोबन और आलम है जवानी का
उमंगों की कसक बेचैन करती है उन्हें लेकिन
नज़ाकत रोक देती है इरादा नौजवानी का
शब-ए-फ़ुर्क़त जो ठंडे ठंडे हो जाए विसाल अपना
गुमाँ हो मौत पर अपनी हयात-ए-जावेदानी का
ये दिल क्यूँ बुझ गया सोज़-ए-फ़िराक़-ए-शो'ला-रूयाँ में
तमाशा है किया है आग ने याँ काम पानी का
ख़याल इक चश्म-ए-मयगूँ का सदा मसरूर रखता है
यहाँ क्या काम है साक़ी शराब-ए-अर्ग़वानी का
यही हैं देख लो वो शाइ'र-ए-मोजिज़-बयाँ 'कैफ़ी'
ज़माने में है चर्चा आज जिन की ख़ुश-बयानी का
ग़ज़ल
है अक्स-ए-आईना दिल में किसी बिलक़ीस-ए-सानी का
दत्तात्रिया कैफ़ी