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हद्द-ए-पर्वाज़-ए-जमाल आप की अंगड़ाई है | शाही शायरी
hadd-e-parwaz-e-jamal aap ki angDai hai

ग़ज़ल

हद्द-ए-पर्वाज़-ए-जमाल आप की अंगड़ाई है

मक़बूल नक़्श

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हद्द-ए-पर्वाज़-ए-जमाल आप की अंगड़ाई है
इस से आगे मिरे एहसास की रा'नाई है

अब सफ़र और भी दुश्वार हुआ हम-सफ़रो
तीरगी राह की ज़ेहनों में सिमट आई है

थे जो महबूस तो आफ़ाक-निगाही थी नसीब
हुए आज़ाद तो हर चीज़ इलाक़ाई है

हम कभी रोए थे जिस बात पे पहरों ऐ 'नक़्श'
आज उस बात पे रह रह के हँसी आई है