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हाथ फैलाओ तो सूरज भी सियाही देगा | शाही शायरी
hath phailao to suraj bhi siyahi dega

ग़ज़ल

हाथ फैलाओ तो सूरज भी सियाही देगा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

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हाथ फैलाओ तो सूरज भी सियाही देगा
कौन इस दौर में सच्चों की गवाही देगा

सोज़-ए-एहसास बहुत है इसे कम-तर मत जान
यही शोला तुझे बालीदा-निगाही देगा

यूँ तो हर शख़्स ये कहता है खरा सोना हूँ
कौन किस रूप में है वक़्त बता ही देगा

हूँ पुर-उम्मीद कि सब आस्तीं रखते हैं यहाँ
कोई ख़ंजर तो मिरी प्यास बुझा ही देगा

शब-गज़ीदा को तिरे इस की ख़बर ही कब थी
दिन जो आएगा ग़म-ए-ला-मुतनाही देगा

आइना साफ़-दिल इतना भी नहीं अब कि तुम्हें
अस्ल चेहरे के ख़त-ओ-ख़ाल दिखा ही देगा

तेरे हाथों का क़लम है जो असा-ए-दरवेश
यही इक दिन तुझे ख़ुर्शीद-कुलाही देगा