हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना
उम्र भर अक़्ल से सीखा किए नादाँ होना
चार ज़ंजीर-ए-अनासिर पे है ज़िंदाँ मौक़ूफ़
वहशत-ए-इश्क़ ज़रा सिलसिला-ए-जुम्बाँ होना
जमा करता हूँ गिरेबाँ के निकाले हुए तार
याद आया है मुझे सर-ब-गरेबाँ होना
दिल बस इक लर्ज़िश-ए-पैहम है सरापा यानी
तेरे आईना को आता नहीं हैराँ होना
फ़ाल-अफ़्ज़ूदनी-ए-मुश्किल है हर आसानी-ए-कार
मेरी मुश्किल को मुबारक नहीं आसाँ होना
राहत-ए-अंजाम-ए-ग़म और राहत-ए-दुनिया मालूम
लिख दिया दिल के मुक़द्दर में परेशाँ होना
दे तिरा हुस्न-ए-तग़ाफ़ुल जिसे है चाहे फ़रेब
वर्ना तू और जफ़ाओं पे पशीमाँ होना
हाए वो जल्वा-ए-ऐमन वो निगाह-ए-सर-ए-तूर
फ़ित्ना-सामाँ से तिरा फ़ित्ना-ए-सामाँ होना
ख़ाक-ए-'फ़ानी' की क़सम है तुझे ऐ दश्त-ए-जुनूँ
किस से सीखा तिरे ज़र्रों ने बयाबाँ होना
ग़ज़ल
हासिल-ए-इल्म-ए-बशर जहल का इरफ़ाँ होना
फ़ानी बदायुनी