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हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम | शाही शायरी
han nahin ke bich dhundlai si sham

ग़ज़ल

हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम

अहसन यूसुफ़ ज़ई

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हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम
साए साए में है शबनम सा क़याम

चेहरे आँखें होंट हँसते हैं तमाम
बस्ती बस्ती तोहमत-ए-आवारा-गाम

रौशनी की बाज़याबी आफ़्ताब
टूटने वाले सितारे तेरा नाम

हर्फ़-ओ-लब मालूम सम्तों के नक़ीब
दिल सफ़ीर-ए-ना-गहाँ सम्त-ए-कलाम

काइनात-ए-लम्स मौजूद-ओ-अदम
कुछ न होना भी हुआ इतना तमाम