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हाए वो मुस्कुराए जाते हैं | शाही शायरी
hae wo muskurae jate hain

ग़ज़ल

हाए वो मुस्कुराए जाते हैं

सय्यद प्रवेज़

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हाए वो मुस्कुराए जाते हैं
दो-जहाँ लड़खड़ाए जाते हैं

आतिशीं हुस्न दरख़्शंदा जबीं
मह-ओ-अंजुम पे छाए जाते हैं

उफ़ वो तारों की मस्त छाँव में
आप ही मुस्कुराए जाते हैं

हर तबस्सुम है एक अफ़्साना
जिस को हँस कर सुनाए जाते हैं

हाए उन मस्त अँखड़ियों की क़सम
दो-जहाँ को पिलाए जाते हैं

मेरे रंगीन शे'रों को 'परवेज़'
मुझ से छुप कर वो गाय जाते हैं