हाए उस शोख़ का अंदाज़ से आना शब-ए-वस्ल
और रह रह के वो एहसान जताना शब-ए-वस्ल
क़हर है ज़हर है अग़्यार को लाना शब-ए-वस्ल
ऐसे आने से तो बेहतर है न आना शब-ए-वस्ल
दूर कोसों मेरी बालीं से उड़ी फिरती है
क्या कोई ढूँड लिया और ठिकाना शब-ए-वस्ल
हासिल उस ज़िक्र-ए-तग़ाफ़ुल से गुज़श्त आंचे गुज़श्त
फ़ाएदा फ़ित्ना-ए-ख़ुफ़ता को जगाना शब-ए-वस्ल
ये लगावट तो रक़ीबों के रक़ीबों से रहे
अब कभी आ के मुझे मुँह न दिखाना शब-ए-वस्ल
ग़ज़ल
हाए उस शोख़ का अंदाज़ से आना शब-ए-वस्ल
ज़हीर देहलवी