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हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है | शाही शायरी
hae kafir tere hamrah adu aata hai

ग़ज़ल

हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है

ज़हीर देहलवी

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हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है
क्या कहूँ पास ये तेरा है कि तू आता है

निकहत-ए-इत्र में बस-बस के जो तू आता है
अपने हमराह लिए रश्क की बू आता है

ना-तवानी से नहीं आह-ओ-फ़ुग़ाँ की ताक़त
नाला थम थम के मिरा ता-ब-गुलू आता है

चौंक पड़ता हूँ शब-ए-वादा तिरे धोके में
हर क़दम पर यही खटका है कि तू आता है

दुख़्तर-ए-रज़ के क़दम तक तो रसाई मालूम
मोहतसिब संग-ए-दर-ए-मय-कदा छू आता है

ज़ख़्म-ए-दिल पर कभी टाँका न लगाया तुम ने
हम तो समझे थे तुम्हें ख़ूब रफ़ू आता है