हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है
क्या कहूँ पास ये तेरा है कि तू आता है
निकहत-ए-इत्र में बस-बस के जो तू आता है
अपने हमराह लिए रश्क की बू आता है
ना-तवानी से नहीं आह-ओ-फ़ुग़ाँ की ताक़त
नाला थम थम के मिरा ता-ब-गुलू आता है
चौंक पड़ता हूँ शब-ए-वादा तिरे धोके में
हर क़दम पर यही खटका है कि तू आता है
दुख़्तर-ए-रज़ के क़दम तक तो रसाई मालूम
मोहतसिब संग-ए-दर-ए-मय-कदा छू आता है
ज़ख़्म-ए-दिल पर कभी टाँका न लगाया तुम ने
हम तो समझे थे तुम्हें ख़ूब रफ़ू आता है
ग़ज़ल
हाए काफ़िर तिरे हमराह अदू आता है
ज़हीर देहलवी