हाए दम भर भी दिल ठहर न सका
हाथ सीने पे कोई धर न सका
आईना किस से देखा जाता है
रश्क के मारे वो सँवर न सका
रह गया आँख में नज़ाकत से
दिल में नक़्शा तिरा उतर न सका
इस जहाँ से गुज़र गए लाखों
उस गली से कोई गुज़र न सका
मय-कशी से नजात मुश्किल है
मय का डूबा कभी उभर न सका
मेरा नामा ख़त-ए-मुक़द्दर था
कि नज़र से तिरी गुज़र न सका
जो तिरे इश्क़ में तबाह हुआ
कोई उस को तबाह कर न सका
आग ऐसी लगी थी सीने में
आँख से दिल में वो उतर न सका
मौसम-ए-गुल में भी 'जलील' अफ़्सोस
दामन अपना गुलों से भर न सका

ग़ज़ल
हाए दम भर भी दिल ठहर न सका
जलील मानिकपूरी