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गुज़र जहाँ के ख़ंजर-ए-दो-दम से खेलता हुआ | शाही शायरी
guzar jahan ke KHanjar-e-do-dam se khelta hua

ग़ज़ल

गुज़र जहाँ के ख़ंजर-ए-दो-दम से खेलता हुआ

पंडित अमर नाथ होशियार पुरी

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गुज़र जहाँ के ख़ंजर-ए-दो-दम से खेलता हुआ
ख़ुशी से खेलता हुआ अलम से खेलता हुआ

हवा-ए-दैर-ओ-का'बा-ओ-हरम से दौर-दौरा
हवा-ए-दैर-ओ-का'बा-ओ-हरम से खेलता हुआ

किसी के गेसुओं के पेच-ओ-ख़म का हो के रह गया
किसी के गेसुओं के पेच-ओ-ख़म से खेलता हुआ

निगाह-ए-मस्त में जहान-भर की मस्तियाँ लिए
वो कौन आ रहा है जाम-ए-जम से खेलता हुआ

तमाम-उम्र खेलते रहे क़ज़ा की गोद में हमीं
ये क्या मज़ाक़ कर गया तू हम से खेलता हुआ

बुलंदियों को पस्तियों को रौंदता चला गया
हँसी-ख़ुशी तुम्हारे हर क़दम से खेलता हुआ

अभी तो रेंगता हुआ अदम को जा रहा हूँ मैं
फिर उल्टे पाँव आऊँगा अदम से खेलता हुआ