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गुज़र गए हैं जो मौसम कभी न आएँगे | शाही शायरी
guzar gae hain jo mausam kabhi na aaenge

ग़ज़ल

गुज़र गए हैं जो मौसम कभी न आएँगे

आशुफ़्ता चंगेज़ी

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गुज़र गए हैं जो मौसम कभी न आएँगे
तमाम दरिया किसी रोज़ डूब जाएँगे

सफ़र तो पहले भी कितने किए मगर इस बार
ये लग रहा है कि तुझ को भी भूल जाएँगे

अलाव ठंडे हैं लोगों ने जागना छोड़ा
कहानी साथ है लेकिन किसे सुनाएँगे

सुना है आगे कहीं सम्तें बाँटी जाती हैं
तुम अपनी राह चुनो साथ चल न पाएँगे

दुआएँ लोरियाँ माओं के पास छोड़ आए
बस एक नींद बची है ख़रीद लाएँगे

ज़रूर तुझ सा भी होगा कोई ज़माने में
कहाँ तलक तिरी यादों से जी लगाएँगे