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गुज़ारिश कर सबा ख़िदमत में तू उस ला-उबाली के | शाही शायरी
guzarish kar saba KHidmat mein tu us la-ubaali ke

ग़ज़ल

गुज़ारिश कर सबा ख़िदमत में तू उस ला-उबाली के

इश्क़ औरंगाबादी

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गुज़ारिश कर सबा ख़िदमत में तू उस ला-उबाली के
तिरे जाने से गुल मुरझा गए हैं नक़्श-ए-क़ाली के

मिरे आग़ोश जब से उठ गया है तो मैं रोता हूँ
नहीं थमते हैं अश्क-ए-चश्म तस्वीर-ए-निहाली के

मैं बे-ख़ुद हूँ मुझे म'अज़ूर रख रोने में ऐ साक़ी
मिरी छाती भरी है दर्द से मीना-ए-ख़ाली के

तसव्वुर में तसद्दुक़ में हूँ मैं उस शम्अ-रू ऊपर
हैं गोया 'इश्क़' हम तस्वीर-ए-फ़ानूस-ए-ख़याली के