ग़ुस्सा आता है प्यार आता है
ग़ैर के घर से यार आता है
मय पिलानी अगर नहीं मंज़ूर
अब्र क्यूँ बार बार आता है
तेरे रोने से अब मुझे भी ख़ौफ़
दीदा-ए-अश्क-बार आता है
दर्द-ए-दिल क्या बयाँ करूँ 'रश्की'
उस को कब ए'तिबार आता है
ग़ज़ल
ग़ुस्सा आता है प्यार आता है
मोहम्मद अली ख़ाँ रश्की