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ग़ुरूर-ज़ब्त से आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक बात आ पहुँची | शाही शायरी
ghurur-e-zabt se aah-o-fughan tak baat aa pahunchi

ग़ज़ल

ग़ुरूर-ज़ब्त से आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक बात आ पहुँची

हरी चंद अख़्तर

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ग़ुरूर-ज़ब्त से आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक बात आ पहुँची
हवस ने क्या किया दिल से ज़बाँ तक बात आ पहुँची

सुकून-ए-दिल से नाक़ूस ओ अज़ाँ तक बात आ पहुँची
ख़ुदा वालों की हिम्मत से कहाँ तक बात आ पहुँची

ख़िलाफ़त से जबीन ओ आस्ताँ तक बात आ पहुँची
ख़ुदा और इब्न-ए-आदम में यहाँ तक बात आ पहुँची

मिली थी आँख और आह-ओ-फ़ुग़ाँ तक बात आ पहुँची
ज़रा सी बात थी लेकिन यहाँ तक बात आ पहुँची

हमारी दास्ताँ में ज़िक्र-ए-क़ैस-ओ-कोहकन आया
वहाँ से फिर हमारी दास्ताँ तक बात आ पहुँची